हर रोज़ एक नयी चोट लिया करते हैं
बरसों में जाकर कहीं ज़ख्म भरते हैं
ज़माने हो गए उसे भूले हुए फिर भी
उठती है एक टीस जब उस गली से गुज़रते हैं
दुःख के मौसम भी लगते हैं मन की डालों पर
सहमे हुए से खुशियों के फूल बिखरते हैं
धुआँ बन कर उड़ गयीं दिल की हसरतें
जाने कहाँ जाकर ये बादल उतरते हैं
मन की उलझी राहों में से कौन सा उस तक जाता है
किस गाँव में बसते हैं जो ख्वाब सँवरते हैं
कोई याद यूँ ही कभी छेड़ती है दिल का साज
गीत बनकर फिर वही दर्द उभरते हैं
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